Monday, 31 October 2016

भगवान क्रष्ण से द्वारकाधिश – राधा के कुछ कड़वे प्रश्न कृष्ण से | Story Bhagwan Radha Krishna


Krishna और Radha स्वर्ग में विचरन कर रहें थे, तभी अचानाक दोंनो एक दूसरे के सामने आ गए क्रष्ण तो विचलित हो गए और राधा प्रसन्नचित हो उठी, क्रष्ण सकपकाए और राधा मुस्कुराई.   इससे पहले की क्रष्ण कुछ कहते ईतने राधा बोल उठी.  ‘ कैसे हो द्वारकाधीश ??

जो राधा उंन्है, कान्हा कान्हा कह के बुलाया कर ती थी

उसके मुख से द्वारकाधीश का संबोधन क्रष्ण को भितर तक घायल कर गया। फिर भी क्रष्ण ने अपने आपको संभाल ते हुए बोले राधा से, “ मै तो तुम्हारे लिए आज भी वही कान्हा हूँ जो कल था तुम मुझे द्वारकाधीश मत कहो ।
चलो बैठते है, कुछ तुम अपनी सुनाओ और कुछ मै अपनी कहता हूँ । सच कहूँ राधा जब भी तुम्हारी याद आती थी, आंखे आँसुओ से भर आती थी”।
इतने में राधा बोली “मेरे साथ ऐसा कभी कुछ नहीं हुआ. ना तुम्हारी याद आई. न कोई आंसू बहा। क्यूंकि हम तुम्हैं कभी भुले ही कहाँ थे जो तुम याद आते,
इन आँखों में सदा तुम रहते हो कहीं आँसुओ के साथ निकल न जाओ इसलिए रोते भी नहीं थे। प्रेम के अलग होने पर तुमने क्या खोया जरा आज इसका आईना देखलो।

कुछ कडवे सच और प्रश्न सुन पाओ तो सुनाऊ आपको ?

  • क्या तुमने कभी सोचा की इस तरक्की में तुम कितना पिछड गए,
  • यमुना के मिठे पानी से जिंदगी शुरु की और समुन्द्र के खारे पानी तक पहुँच गए ?
  • एक ऊंगली पर चलने वाले सुदर्शन चक्र पर भरोसा कर लिया और दसों ऊंगलिओ पर चलने वाली बांसुरी को भूल गए ?
  • कान्हा जब तुम प्रेम से जुडे थे तो जो ऊंगलि गोवर्धन पर्वत अठाकर लोगों को विनाश से बचाती थी,
  • प्रेम से अलग होने पर उसी ऊंगली ने क्या क्या रंग दिखाया ?
सुदर्शन चक्र उठाकर विनाश के काम आने लगी, कान्हा और द्वारकाधिश में क्या फर्क होता है बताऊ ?
अगर तुम कान्हा होते तो तुम सुदामा के घर जाते, सुदामा तुम्हारे घर नही आते ।
युद्ध में और प्रेम में यही तो फर्क होता है,
युद्ध में आप मिटाकर जितते है और प्रेम में आप मिटकर जितते हैं ।
कान्हा प्रेम में डुबा हुआ आदमी, दुखी तो रह सकता है पर किसी को दूख: नहीं देता।  
आप तो बहुत सी कलाओं के स्वामी हो, स्वप्न दूर द्रष्टा हो,  गीता जैसे ग्रंथ के दाता हो, पर आपने ये कैसे-कैसे निर्णय किया अपनी पूरि सेना कौरवों को सोंप दी, और अपने आपको पांडवों के साथ कर लिया।
सेना तो आपकी प्रजा थी राजा तो पालाक होता है, उनका रक्षक होता है। आप जैसे महान ज्ञानी उस रथ को चला रहा था, जिस रथ पर अर्जुन बेठा था । आपकी प्रजा को हि मार रहा था, अपनी प्रजा को मरते देख आपमें करुणा नहीं जगी।
क्यों, क्युंकि आप प्रेम से शुन्य हो चुके थे आज धरती पर जाकर देखो अपनी द्वारकाधिश वाली छवि को ढुंढ्ते रह जाओगे, हर घर, हर मंदिर, में मेरे साथ ही खडे नजर आओगे।
आज भी मै मानती हूँ  की लोग आपकी लिखी हुई गिता के ज्ञान की बातें करते है, उनके महत्व की बात करते है, मगर धरती के लोग युद्ध वाले द्वारकाधिश पर नहीं प्रेम वाले कान्हा पर भरोसा करते है, और गीता मे कहीं मेरा नाम भी नही लेकिन गीता के समापन पर राधे राधे करते है”



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